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वह॑न्तु त्वा मनो॒युजो॑ यु॒क्तासो॑ नव॒तिर्नव॑। वाय॒वा च॒न्द्रेण॒ रथे॑न या॒हि सु॒तस्य॑ पी॒तये॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vahantu tvā manoyujo yuktāso navatir nava | vāyav ā candreṇa rathena yāhi sutasya pītaye ||

पद पाठ

वह॑न्तु। त्वा। म॒नः॒ऽयुजः॑। यु॒क्तासः॑। न॒व॒तिः। नव॑। वायो॒ इति॑। आ। च॒न्द्रेण॑। रथे॑न। या॒हि। सु॒तस्य॑। पी॒तये॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:48» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:24» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वायो) बलवान् राजन् ! (मनोयुजः) मन से ब्रह्म का योग करनेवाले (युक्तासः) जिन्होंने योगाभ्यास किया वे (नव) नौ वार गुनी गईं (नवतिः) नव्वे संख्या से युक्त नाड़ियों के सदृश (त्वा) आप राजा को (वहन्तु) प्राप्त हों वा प्राप्त करावें आप इनके (सुतस्य) प्राप्त राज्य के (पीतये) रक्षण आदि के लिये (चन्द्रेण) सुवर्ण आदि से बने हुए (रथेन) वाहन से (आ, याहि) आइये ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो श्रेष्ठ यथार्थवक्ता जन आपके सहायक होवें तो आप जिस-जिस पदार्थ की इच्छा करें, वह-वह सब सिद्ध होवें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वायो ! मनोयुजो युक्तासो नव नवतिर्नाड्य इव त्वा वहन्तु त्वमेषां सुतस्य पीतये चन्द्रेण रथेनाऽऽयाहि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वहन्तु) प्राप्नुवन्तु प्रापयन्तु वा (त्वा) त्वां राजानम् (मनोयुजः) ये मनसा ब्रह्म युञ्जते ते (युक्तासः) कृतयोगाभ्यासाः (नवतिः) (नव) नवगुणिता (वायो) बलिष्ठ राजन् (आ) (चन्द्रेण) (रथेन) (याहि) (सुतस्य) प्राप्तस्य राज्यस्य (पीतये) रक्षणाय ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यद्युत्तमा आप्तजनास्तव सहायाः स्युस्तर्हि भवान् यद्यदिच्छेत् तत्तत्सर्वं सिद्ध्येत् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जर श्रेष्ठ विद्वान लोक तुझे सहायक असतील तर तू ज्या ज्या पदार्थाची इच्छा करशील ती ती सिद्ध होईल. ॥ ४ ॥